जामुन (Java Plum)


असाढ़ की पहली बारिश होते ही बाग में जामुनी बादलों के फूल खिलने लगते हैं। पूरब की लाली धीरे- धीरे बहती पुरवैया के साथ कत्थई रंग में बदल जाती है, हवाओं का मीठापन जामुन के हरे पत्तों के बीच संघनित हो उठता है। पूरा वातावरण जामुनी गंध से मह मह करने लगता है। माटी का रंग जामुनी हो उठता है, जीभ का स्वाद जामुनी हो उठता है, आंखों में जामुनी रंग उतर आता है। 
तनिक झकोरा चलने पर बरसात की झिर झिर के साथ जामुन बदबदा कर चूने लगते हैं, बरसात के बाद पत्तों पर रुके पानी की तरह डाल हिलाने पर ये फल झरने लगते हैं। बालक वृंद कमीज, फिराक, जेब, झोला जिसे जहां मिलता है समेटने में लग जाते हैं, रंगीन हो जाते हैं। मुंह में घुले रस से भरे इन फलों को खाते समय लगता है प्रकृति मां ने हमें कितना कुछ दिया है, कृतज्ञता से पेट के साथ हृदय भी भर आता है। 

जामुन गहराए हुए बादलों वाली रात का स्वाद है, व्याकरण का शास्त्री तो नही पर मुझे लगता है कि जामुन शब्द की व्युत्पत्ति यामिनी से हुई होगी, भीगी हुई स्याह रात की रंगत वाला फल है जामुन, इस लिहाज से जामुन जमुना का कोई सहोदर लगता है। 

ठेले पर सजे लाल बल्ब की रोशनी में चमकते करीने से लगे जामुन के फलों को देखकर मिट्टी में सने बटोरे गए दिन याद आते हैं जब जीवन बिना 'हाइजीन और प्राइस' की चिंता के बीत रहा था। एसेंस के दौर में वे असाढ़ी दिन याद आते जब माटी की महक में कनेल, महुआ, जामुन, आम, नीम घुली हुई होती थीं। बच्चे के लिए हर साल बीसियों हजार रुपए की नई किताबों, यूनिफॉर्म को अनिवार्य रूप से खरीदने के दौर में वे दिन याद आते हैं जब बड़े भाई की किताबों पर अपना नाम लिखने , जिल्द चढ़ाने और उनकी यूनिफॉर्म को पहनने में स्वयं को राजा महाराजा से कम नहीं समझा जाता था।

दिल्ली में बादल छाए हैं, मन किसी जामुनी शाख पर बैठा है, अम्मा की आवाज आ रही है, ' उतर आवा भईया बिछल जाबा, जमुनिया की ठाह बहुत कच्ची होत है।

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