जब अमेरिका के 'हैदर अली' ने अंग्रेज़ों को महज़ 26 मिनटों में धूल चटाई

 


बात कोई 200 साल से भी अधिक पुरानी है, जब अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में एक अमेरिकी लड़ाकू जलपोत ने ख़ुद से बहुत बड़े ब्रितानी जहाज़ जनरल मॉंक (monk) को मात्र 26 मिनट के युद्ध में हराकर सरेंडर करने को मजबूर कर दिया था.

अमेरिकी जहाज़ का नाम था- हैदर अली (Hyder-Ally). यह मैसूर के शासक हैदर अली के नाम पर था जो थोड़े बदले हुए रूप में था.

आठ अप्रैल, 1782 की सुबह के युद्ध की ये घटना अमेरिकी नौसेना के इतिहास में दर्ज है और अमेरिकी नौका के कप्तान जोशुआ बर्नी के फैमिली एसोसिएशन के अनुसार डेलावेयर की खाड़ी में हुई इस जंग से संबंधित पेंटिग यूएस नैवल एकेडमी में भी लगी हुई है.

अमेरिकी नौसैना के इतिहास में जेम्स फेनिमोर कूपर ने इसे 'अमेरिकी झंडे के तले घटित प्रभावशाली घटनाओं में से एक' बताया है, शायद इसलिए क्योंकि 'अमेरिका की ब्रिटेन के ख़िलाफ़ ये पहली इतनी बड़ी नौसेनिक जीत थी.

 लड़ाई में ब्रितानी जनरल लॉर्ड चार्ल्स कार्नवॉलिस पहले ही, साल 1781 में अमेरिकी कमांडर इन चीफ़ जॉर्ज वाशिंगटन के सामने घुटने टेक चुके थे.'

हैदर अली का नाम अमेरिका कैसे पहुंचा?

मैसूर विश्वविद्यालय इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर सेब्सटियन जोसफ़ कहते हैं, "दक्षिण भारतीय राज्य मैसूरु की 18वीं सदी के मध्य से वैश्विक पहचान थी."

FirstTalk से एक बातचीत में प्रोफ़ेसर जोसफ़ ने कहा, "1757 की पलासी की लड़ाई के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी उत्तर भारत में एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरी. लेकिन हैदर अली और उनके उत्तराधिकारी टीपू सुल्तान ने ब्रितानियों के विरुद्ध 30 साल में चार जंगें लड़ीं और उन्हें दक्षिण के एक बड़े हिस्से से दूर रखा. इसी दरम्यान अमेरिका की आज़ादी की लड़ाई 1783 में समाप्त हो गई और एक नए देश अमेरिका का जन्म हुआ."

हालांकि इतिहासकार राजमोहन गांधी ने अपनी किताब 'मॉर्डन साउथ इंडिया: अ हिस्ट्री फ्रॉम द सेवंटीन सेंचुरी टु आवर टाइम्स' में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के कारण यूरोपीय देशों जैसे पुर्तगाल, हॉलैंड, इंग्लैंड और फ्रांस के प्रभाव और उस नाते इससे जुड़ाव की बात की है.

लेकिन सवाल है कि हैदर अली का नाम अमेरिकी स्वतंत्रता सेनानियों और भारत से सैकड़ों मील दूर बसे देश अमेरिका कैसे पहुंचा?



ब्रिटेन में क्यों रखे जा रहे थे टीपू और हैदर के नाम
कनाडा के एडमंटन से फ़ोन पर FirstTalk से बात करते हुए इतिहासकार अमीन अहमद ने कहा कि इसके दो स्रोत सामने आते हैं: फ्रांसीसी सैनिक अधिकारियों के अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख किरदारों को लिखी गई चिट्ठियां और घोड़े!

एंकास्टर के ड्यूक प्रेग्रीन बर्टी को, जो ब्रितानी सेना में जनरल और लेफ्टिनेंट जनरल भी रहे, घोड़ों की रेस का शौक था और उन्होंने अपने एक घोड़े का नाम हैदर अली (1765) रख दिया था.

चंद सालों पहले हैदर अली ने ख़ुद को मैसूर के शासक के तौर पर स्थापित कर लिया था और इस बीच त्रिवादी (पांडिचेरी के पास एक जगह) में ईस्ट इंडिया कंपनी को मात भी खानी पड़ी थी. टीपू सुल्तान ने भी कच्ची उम्र से ही कंपनी के ठिकानों पर हमलों का सिलसिला शुरू कर दिया था.

इस दौरान इंग्लैंड में रेस के घोड़ों के एक ब्रीडर ने अपने यहां पैदा होनेवाले घोड़े के एक बच्चे का नाम टीपू साहब रख दिया. बाद में इन्हीं घोड़ों के वंश का एक जानवर अमेरिका भेजा गया और वहां भी घोड़ों का नाम मैसूर के शासकों के नाम पर रखने का सिलसिला चल पड़ा.

हैदर अली नाम के घोड़े के वंशज को लेकर अमेरिका के पोर्ट्समाउथ में छपे एक पैम्फ़लेट का ज़िक्र अमीन अहमद की एक लेख में मिलता है, जिस पैम्फ़लेट की प्रति अमेरिकी संसद की पुस्तकालय में मौजूद है.

'ब्रेव मुग़ल प्रिंस'

अमीन अहमद कहते हैं कि ये याद रखने की ज़रूरत है कि जहां ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से हैदर अली और टीपू सुल्तान लंबी लड़ाई लड़ते रहे वहीं ब्रितानियों के साथ हैदर अली की व्यापारिक और सैन्य संधि भी रही.और हो सकता है ये भी एक वजह रही हो जिसके कारण कम से कम कुछ ब्रितानियों ने अपने जानवरों या उस तरह की चीज़ों के नाम मैसूर के इन शासकों पर रखे हों.उन्होंने ये बात FirstTalk के इस सवाल पर कही, जिसमें पूछा गया था कि ब्रितानी आख़िर अपने रेस के घोड़ों के नाम अपने दुश्मनों के नाम पर क्यों रख रहे थे.

अमेरिकी स्वतंत्रता की लड़ाई के मुख्य नायकों को चिट्ठी लिखे जाने का ज़िक्र 1777 का मिलता है जिसमें फ्रांसीसी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल नेकॉमते द त्रेसान ने बेंजामिन फ्रैंकलिन को भेजे गए ख़त में 'ब्रेव मुग़ल प्रिंस' बुलाया है और कहा है कि वो हैदर अली के साथ काम कर रहे यूरोपवासियों से उनका संपर्क करवा सकते हैं.अमेरिकी लड़ाई के नायकों जैसे जॉन एडम्स, जो अमेरिका के पहले उप-राष्ट्रपति रहे और बाद में राष्ट्रपति बने, उनसे लेकर अमेरिका के छठवें राष्ट्रपति जॉन क्विंसी एडम्स और बाद में चौथे राष्ट्रपति बने जेम्स मैडिसन तक भारत के भीतरी संघर्ष को बहुत ध्यान से देखते रहे.साम्राज्यवाद के विस्तार के चलते ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल और अन्य यूरोपीय देशों के बीच भारतीय उप महाद्वीप को लेकर लंबी खींच-तान और लड़ाई जारी रही, जिसमें आख़िर में फ्रांस और ब्रिटेन के बीच सबसे लंबा संघर्ष रहा और आख़िरी जीत ब्रिटेन की रही.

अमेरिकी क्रांति के कवि ने लिखी हैदर अली की गाथा

प्रोफ़ेसरलड़ाई और मैसूर के इन दोनों शासकों के बीच फ्रांस एक बड़ा पुल था, जहां अमेरिका की लड़ाई फ्रांसीसी वित्तीय और सैन्य मदद से संभव हो पाई, वहीं हैदर अली और टीपू सुल्तान ने सैन्य प्रशिक्षण और सैन्य तकनीक हासिल करने के लिए फ्रांस से बेहद नज़दीकी संबंध क़ायम रखे.

शायद ये साझा मित्रता और एक ही दुश्मन (ब्रिटेन) का असर था कि फिलिप फ्रेनो जिन्हें अमरीकी क्रांति का कवि भी बुलाया जाता है, उन्होंने हैदर अली की गाथा लिखी, जिसकी कुछ पंक्तियां यूं हैं:

पूरब के एक राजकुमार पर उसका नाम है

वो जिसके दिल में आज़ादी की मशाल जल रही है

उसने ब्रितानी को लज्जित किया है

अपने देश के साथ किए गए अन्याय का बदला लेकर

19 अक्टूबर, 1781 में ब्रितानी सेना की अमेरिकी लड़ाकों के हाथ हार के बाद जब न्यू जर्सी के ट्रंटन में जीत का जश्न मनाया गया तो उसमें जो 13 जाम पिए गए, उसमें एक हैदर अली के नाम का भी था.




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