हाल ही में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आज़मगढ़ के मंगरावां गांव में एक विवाह समारोह में शामिल हुए। यह कार्यक्रम समाजसेवी और दुबई के प्रतिष्ठित उद्योगपति हाजी राशिद के यहां आयोजित किया गया था। हाजी राशिद, 2022 में राजनीतिक द्वेष का शिकार हुए और उन पर गैंगस्टर एक्ट लगा दिया गया।
दुखद पहलू यह रहा कि कुछ मीडिया संस्थानों—जैसे दैनिक भास्कर और नवभारत टाइम्स—ने इस कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करते हुए बेहद आपत्तिजनक और भ्रामक हेडलाइंस का सहारा लिया। “गैंगस्टर के घर दावत में पहुंचे सपा प्रमुख” जैसी हेडिंग्स न केवल एक व्यक्ति की सामाजिक छवि को नुकसान पहुँचाती हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि मीडिया का एक वर्ग किस हद तक पक्षपात और मानसिक दिवालियापन का शिकार हो चुका है।
अगर किसी व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज होना ही उसकी पहचान बन जाए, तो देश के गृह मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक, कई नेताओं पर अतीत में गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज रहे हैं। बावजूद इसके, उन्हें समाजसेवी और जनप्रतिनिधि की भूमिका में देखा जाता है। फिर हाजी राशिद को सिर्फ एक पक्षीय रिपोर्टिंग के आधार पर क्यों निशाना बनाया जा रहा है?
तारीक शमीम ने इस घटनाक्रम पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “अगर इन पत्रकारों को कुछ ‘हड्डी’ मिली होती, तो शायद इनकी भाषा इतनी ज़हरीली न होती। मीडिया का एक बड़ा हिस्सा तो जैसे मुसलमानों की छवि बिगाड़ने के एजेंडे पर ही चल रहा है।”
हाजी राशिद न सिर्फ आज़मगढ़ बल्कि देश-विदेश में सामाजिक कार्यों और रोज़गार सृजन के लिए जाने जाते हैं। उनके खिलाफ मीडिया द्वारा चलाई गई इस प्रकार की मुहिम निंदनीय है और समाज में नफरत फैलाने की कोशिश है।
अब वक्त आ गया है कि मीडिया अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभाए, किसी के चरित्र हनन का ज़रिया न बने।
writer:-Shadab khan