2 children had taken the revenge of Bhagat Singh
14 दिसम्बर- 14 साल की 2 बच्चियों ने आज ही लिया था भगत सिंह का बदला क्रूर स्टीवेंस को मारा था।
वीरांगना शांति घोष और सुनीति चौधरी जिनके इतिहास को छिपा दिया नकली कलमकारों ने
भारत की इन नारी शक्तियों को बारम्बार नमन जिन्होंने अपने पराक्रम से ये साबित किया है कि झूठा है वो गाना जिसमे कहीं कहा तो कहीं जबरन कहलवाया जाता है कि मिली थी आज़ादी हमें बिना खड्ग बिना ढाल.
अमर बलिदानी भगत सिंह की फांसी का बदला लेने के लिए भारत की आज़ादी के क्रांतिकारी इतिहास की सबसे तरुण बालाएं शांति घोष और सुनीति चौधरी ने 14 दिसम्बर 1931 को त्रिपुरा के कोमिल्ला के जिला मजिस्ट्रेट CGB स्टीवन को गोली मार दी.. ये लड़कियां केवल 14 साल की थी..
दोनों CGB स्टीवन के बंगले पर तैराकी क्लब के लिए प्रार्थना पत्र लेकर गई और जैसे ही स्टीवन सामने आया वो दोनों माँ भवानी जैसे रौद्र रूप में आ गई. दोनों ने रिवोल्वर निकाल कर स्टीवन पर ताबड़ तोड़ गोलियां बरसा दी. स्टीवन वहीँ ढेर हो गया.
इन युवा लड़कियों के साहसिकता पूर्ण कार्य से संपूर्ण देश ही नहीं बल्कि ब्रिटेन तक अचंभित और रोमांचित था..आइये जाने हमारे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सबसे छोटी उम्र की क्रांतिकारी तरुणियों के बारे में-
शांति घोष-
रणचंडी मानी जा सकने वाली शांति घोष 22 नवम्बर 1916 को कलकत्ता में पैदा हुई.. उनके पिता देवेन्द्र नाथ घोष मूल रूप से बारीसाल जिले के थे, कोमिल्ला कॉलेज में प्रोफ़ेसर थे. उनकी देशभक्ति की भावना ने शांति को कम उम्र से ही प्रभावित किया..
शांति की हस्ताक्षरित पुस्तक पर प्रसिद्द क्रांतिकारी बिमल प्रतिभा देबी ने लिखा "बंकिम की आनंद मठ की शांति जैसी बनना".. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने लिखा," नारीत्व की रक्षा के लिए, तुम हथियार उठाओ, हे माताओ.." इन सबके के आशीर्वाद ने युवा शांति को प्रेरित किया और उसने स्वयं को उस मिशन के लिए तैयार किया..
जब वह फज़ुनिस्सा गर्ल्स स्कूल की छात्रा थी तो अपनी सहपाठी प्रफुल्ल नलिनी के माध्यम से 'युगांतर पार्टी' में शामिल हुई.. और क्रांतिकारी कार्यों के लिए आवश्यक प्रशिक्षण लिया.. और जल्द ही वह दिन आया उन्होंने अपना युवा जीवन मुस्कुराते हुए बहादुरी से मातृभूमि को समर्पित कर दिया..
14 दिसम्बर 1931 को अपनी सहपाठी सुनीति चौधरी के साथ कोमिल्ला के जिला मजिस्ट्रेट CGB स्टीवन को गोली मार दी.. इन युवा लड़कियों के साहसिकता पूर्ण कार्य से संपूर्ण देश अचंभित और रोमांचित था.. लाखों देशवासियों की प्रशंसा और स्नेह को साथ लेकर शांति अपनी साथी सुनीति के साथ आजीवन कारावास के लिए चली गयी..
जेल में शांति और सुनीति को कुछ समय अलग रखा गया.. यह एकांत कारावास चौदह साल की लड़कियों के लिए दुखी कर देने वाला था.. 28 मार्च 1989 को श्रीमती शांति घोष (दास) का स्वर्गवास हो गया..
सुनीति चौधरी-
क्रान्तिपुत्री कही जा सकें वाली सुनीति चौधरी, स्वतंत्रता संग्राम में एक असाधारण भूमिका निभाने वाली का जन्म मई 22, 1917 पूर्वी बंगाल के त्रिपुरा जिले के इब्राहिमपुर गाँव में एक साधारण हिंदू मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता चौधरी उमाचरण सरकारी सेवा में थे और माँ सुरससुन्दरी चौधरी, एक शांत और पवित्र विचारों वाली औरत थी जिन्होंने सुनीति के तूफानी कैरियर पर एक गहरा प्रभाव छोड़ा..
जब वह छोटी लड़की स्कूल में थी तो उसके दो बड़े भाई कॉलेज में क्रांतिकारी आन्दोलन में थे..सुनीति युगांतर पार्टी में अपनी सहपाठी प्रफुल्ल नलिनी द्वारा भर्ती की गई थी.. कोमिल्ला में सुनीति छात्राओं के स्वयंसेवी कोर की कप्तान थी.. उनके शाही अंदाज और नेतृत्व करने के तरीके ने जिले के क्रांतिकारी नेताओं का ध्यान खींचा..
सुनीति को गुप्त राइफल ट्रेनिंग और हथियार (छुरा) चलाने के लिए चुना गया. इसके तुरंत बाद वह अपनी सहपाठी शांति घोष के साथ एक प्रत्यक्ष कार्रवाई के लिए चयनित हुई और यह निर्णय लिया गया कि उन्हें सामने आना ही चाहिए.. एक दिन 14 दिसंबर 1931 दोनो लड़कियां कोमिल्ला के जिला मजिस्ट्रेट CGB स्टीवन के बंगले पर तैराकी क्लब की अनुमति की याचिका लेकर गई और जैसे ही स्टीवन सम्मुख आया उस पर पिस्तोल से गोलियां दाग दी.
सुनीति के रिवोल्वर की पहली गोली से ही वो मर गया.. इसके बाद उन लड़कियों को गिरफ्तार कर किया गया और निर्दयता से पीटा गया. कोर्ट में और जेल में वो लड़कियां खुश रहती थी.. गाती रहती थी और हंसती रहती थी. उन्हें एक शहीद की तरह मरने की उम्मीद थी, लेकिन उनके नाबालिग होने ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा दिलाई..
हालांकि वो थोड़ा निराश थी लेकिन उन्होंने इस निर्णय को ख़ुशी से और बहादुरी से लिया और कारागार में प्रवेश किया, कवि नाज़ुरल के प्रसिद्ध गीत "ओह, इन लोहे की सलाखों को तोड़ दो, इन कारागारों को जला दो.." को गाते हुए.. 1994 में सुनीति चौधरी (घोष) का स्वर्गवास हुआ!
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