ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे को लेकर एक तरफ दावे किए जा रहें है, दूसरी तरफ कोर्ट में सुनवाई हो रही है. इस बीच काशी के ही करवट मंदिर के महंत ने भी कुछ दावे कर दिए हैं. और हो सकता है उनके ये दावे ज्ञानवापी मामले के हिंदू पक्ष को पसंद ना आएं. महंत गणेश शंकर उपाध्याय का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे में जो ‘शिवलिंग’ जैसी आकृति मिली है वो शिवलिंग नहीं है, बल्कि फव्वारा ही है.
आजतक से बात करते हुए महंत ने दावा किया है,
“देखने में ये आकृति शिवलिंग जैसी प्रतीत हो रही है. लेकिन हम लोगों की जो जानकारी है, उसके मुताबिक वो फव्वारा है. हम लोगों ने बचपन से देखा है. सैकड़ों बार वहां गए हैं. वहां के जो मौलवी होते थे या सेवादार होते थे उनसे हमने इस बारे में उत्सुक्ता से पूछा भी है कि ये क्या है. हमें तो यही कहा गया कि ये फव्वारा है.”
महंत गणेश शंकर बताते हैं कि मौलवी ने उन्हें यही बताया कि ये मुगल काल का फव्वारा है. वो कहते हैं कि उनको कोई जानकारी नहीं है कि उस स्थान पर कभी शिवलिंग था.
ज्ञानवापी में कथित रूप से मिले शिवलिंग को लेकर सोशल मीडिया पर एक बात और काफी चर्चा में है. कहा जा रहा है कि जानबूझ कर शिवलिंग को वजूखाने में रखा गया था और लोग उस पर ही कुल्ला करते थे. इस पर महंत गणेश शंकर कहते हैं,
“कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि उसको बिगाड़ दिया गया. तालाब के बीच में जानबूझकर शिवलिंग को वजू के स्थान पर रख दिया. लोग कहते हैं कि वहां कुल्ला करते हैं, हाथ धोते हैं. वजू में हाथ पैर तो धोते हैं, लेकिन वहां कुल्ला करते हैं, इस बात की जानकारी हमको नहीं है. ना हमने कभी उस तालाब के पानी में किसी को कुल्ला करते देखा है. कुल्ला करने का स्थान बाहर है. वे लोग पानी वहां से जरूर लेते थे. अभी वो परिवर्तित हो गया, पहले वे तालाब से ही पानी लेते थे. एक छोटा बर्तन होता था, उससे लेकर वजू करते थे.”
महंत गणेश शंकर इसे ‘कड़वा सच’ बताते हुए ये तो कहते हैं कि वहां मंदिर था जिसे मुगल काल में तोड़कर मस्जिद बनाई गई. वो बताते हैं कि मंदिर के पीछे का कुछ हिस्सा अब भी बचा हुआ है. लेकिन महंत ये भी दावा करते हैं कि मस्जिद के सामने जो नंदी है उससे मंदिर का कोई लेना देना नहीं है. उनके मुताबिक उनका महंत आवास मस्जिद के सामने ही पड़ता है. वो कहते हैं,
“हमारे महंत आवास का पिछला हिस्सा मंदिर के सामने पड़ता है. हमारे महंत आवास और मस्जिद के बीच में 10 मीटर से ज्यादा की दूरी नहीं है. पहले इस तरह का कोई विवाद नहीं था. बहुत ही भाईचारा और प्रेम था. हम लोग मौलवी जी के यहां जाते और मौलवी भी हमारे यहां आते थे. वो लोग घंटों हमारे यहां बैठते थे. हमारे पूर्व के दादा गुरु के साथ उनका बैठना होता था. बातचीत भी होती थी.”गणेश शंकर ने ये भी कहा कि वजूखाने में फव्वारा होने की जानकारी उन्हें व्यक्तिगत तौर पर मालूम है, लेकिन उन्होंने उस फव्वारे को चलते हुए कभी नहीं देखा है.
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